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कौशिक बसु का कॉलम:आर्थिक विषमता और दुर्बल लोकतंत्र में गहरा संबंध है Breaking News Update
किसी भी देश में आर्थिक असमानता कुछ हद तक एक उपयोगी भूमिका जरूर निभाती है, क्योंकि यह इनोवेशन और कड़ी मेहनत के लिए प्रोत्साहन प्रदान करती है।
उद्यमियों को अकसर नए उपक्रमों में निवेश करने के लिए जोखिम उठाना पड़ता है।
यदि उपक्रम सफल होता है, तो उन्हें जोखिम के लिए उचित मुआवजा मिलेगा।
इसी तरह, जो व्यक्ति कड़ी मेहनत करना चुनता है, उसे उन लोगों की तुलना में अधिक आय मिलनी चाहिए, जो अधिक आरामदायक जीवन शैली अपनाते हैं।
यही वे प्रोत्साहन हैं, जो किसी देश की आर्थिक वृद्धि को आगे बढ़ाते हैं।
इसलिए, एक निश्चित स्तर की आर्थिक असमानता स्वाभाविक है और अर्थव्यवस्था के बढ़ते रहने के लिए जरूरी भी।
हालांकि, आज दुनिया में जिस स्तर की आर्थिक असमानता देखने को मिल रही है, वह जितनी होनी चाहिए, उससे कहीं ज्यादा है।
ऑक्सफैम द्वारा 20 मई 2025 को प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि दुनिया के 10 सबसे अमीर लोगों की संपत्ति में एक साल में 365 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हुई।
यह तंजानिया की पूरी आबादी (लगभग 6.6 करोड़) द्वारा एक वर्ष में अर्जित कुल आय से चार गुना अधिक है।
मान लें कि सबसे अमीर लोगों की सालाना आय उनकी कुल संपत्ति की 5% है तो आज दुनिया के तीन सबसे अमीर व्यक्तियों- मस्क, जकरबर्ग और बेजोस की कुल आय नेपाल की पूरी आबादी यानी 2.96 करोड़ लोगों की आय के बराबर है।
अगर हम सब-सहारन अफ्रीका के देशों की बात करें तो इतनी आय वहां की और बड़ी आबादी के बराबर होगी।
हम जानते हैं ब्रिटिश राज के समय भारत में बहुत असमानता थी।
आजादी के बाद भी रही, लेकिन यह न केवल अंग्रेजों के दौर, बल्कि दुनिया के कई और देशों के मुकाबले भी काफी कम थी।
जब मैं कोलकाता और दिल्ली में पढ़ाई कर रहा था, तो अकसर पाकिस्तान के उन 22 परिवारों की बातें सुनता था, जो अपनी दौलत के जरिए पूरे देश को चलाते थे।
हम फिलीपींस और कई मध्य-पूर्वी देशों में क्रोनी कैपिटलिज्म (मिलीभगत वाले पूंजीवाद) के बारे में पढ़ते थे, जहां कुछ गिने-चुने लोग देश और सरकार को अपने कब्जे में लिए रहते थे।
उस दौर में भारत इन सबसे अलग लगता था।
लेकिन हालिया अध्ययनों से पता चलता है कि भारत में अब क्रोनीवाद तेजी से बढ़ रहा है।
थॉमस पिकेटी और उनके सह-लेखकों द्वारा किए एक अध्ययन के अनुसार भारत में आर्थिक असमानता उस स्तर तक पहुंच चुकी है, जो ब्रिटिश राज के दौर में देखी गई थी।
इस तरह की असमानता दुनिया के किसी भी हिस्से में ठीक नहीं मानी जाती, लेकिन यहां मैं एक नई और गंभीर समस्या की ओर ध्यान दिलाना चाहता हूं : आर्थिक असमानता और लोकतंत्र के कमजोर पड़ने के बीच का संबंध।
आज की दुनिया में असमानता का असर कुछ अलग ही रूप ले रहा है, और इसकी एक बड़ी वजह है डिजिटल कनेक्टिविटी का बढ़ना, सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स का उभरना।
पहले के समय में जो लोग बहुत अमीर होते थे, उनके पास कई घर, कारें और जेवर होते थे।
आज भी उनके पास ये सब कुछ है, लेकिन इसके अलावा अब उनके पास प्लेटफॉर्म्स पर नियंत्रण और ऐसा प्रभाव डालने की ताकत भी है, जो पहले मुमकिन नहीं थी।
भारतीय ग्रामीण जीवन पर काम करने वाले मानवशास्त्रियों ने लिखा है कि गांव की बैठकों में जब आम लोग खुलकर अपनी बातें रख रहे होते थे, तो जैसे ही गांव का कोई अमीर जमींदार आता था, सब चुप हो जाते थे।
आज जब पूरी दुनिया एक तरह से डिजिटल रूप से एक ही बड़ी बैठक में जुड़ी हुई है, तो वही बात वैश्विक स्तर पर हो रही है।
कुछ अरबपतियों के हाथों में जब असर डालने के सारे साधन आ जाते हैं, तो आम लोगों की आवाज दब जाती है।
और यही लोकतंत्र को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा है।
उद्यमिता और लाभ कमाने की प्रेरणा मानव-प्रगति के दो बड़े स्रोत हैं।
हमें बाजार को काम करने देना चाहिए, लेकिन साथ ही यह भी जरूरी है कि उस मुनाफे का एक उचित हिस्सा गरीबों की भलाई के लिए इस्तेमाल किया जाए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)।
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Posted on 03 July 2025 | Follow HeadlinesNow.com for the latest updates.
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