रामन राघव कौन था, मुम्बई शहर में उसकी इतनी दहशत क्यों थी ?


 यह घटना 1966-1967 मे घटी थी। तब हम बंबईमे एक चाल मे रहा करते थे। गर्मी के दिनों में हम सब बाहर आंगन में ही सोया करते थे।

लेकिन एक दिन हमारी ये खुले आसमा के नीचे सोनेकी खुशियां खत्म हो गईं।

"देखो बेटा, आज से बाहर सोना बंद करो", पिताजी ने सुना दिया।

ऊन दिनो पिताजी से 'क्यों' यह पुछनेकी हमारी हिम्मत नही थी। ऊस रात से हम सबने घर मे ही बिस्तर लगाना शुरु किया!

अगली सुबह मैंने अखबार देखा। "सरफिरे हत्यारे द्वारा मुंबई में एक और हत्या। सायन कोलीवाड़ा में अपने घर के बाहर सो रहे आदमी की तेज धारवाले हथियार से हत्या कर दी गई। "

आगेकी खबर मै पढ न सका। लेकीन बदन का सारा खून जैसे की बर्फसा बना। मुझे कल अपने पिता द्वारा कहे गए शब्द याद आए।

तिरपन साल पहले, मुंबई एक मानवीय क्रूरता से जमी हुई थी। आतंक थम गया था। उस आतंक का नाम था, रामन राघवन!!

आज से बावन तिरपन साल पहले, जब आधुनिक व्यवस्था नहीं थी, तब मुंबई पुलिस उसे पकड़ने की पूरी कोशिश कर रही थी।..... पुलिस ने उसे पकड़ने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाया था। उनके सभी स्रोत तत्कालीन एसीपी रमाकांत कुलकर्णी के पास थे।

एसीपी श्री रमाकांत कुलकर्णी…

रामन राघवन विभिन्न हत्याओं में शामिल था। श्री कुलकर्णी को पता था कि हत्यारा रामन राघवन ही था, जो कुछ लोगों द्वारा किए गए विवरणों सा था, जिंहोंने वास्तव में उसे देखा था, पुराने पुलिस रिकॉर्ड की तस्वीरों से। जब पुलिस उसे पकड़ने की कोशिश कर रही थी, पुलिस निरीक्षक ऍलेक्स फियालो सड़क से नीचे उतर रहे थे, तब रामन राघवन, जो उनके सामने खडा था, उनके पास से गुजरा। बस एक पल ....इतनाही। जब फियालो को यकीन हो गया कि यह रामन है, तो बडी कुशलता से उहोंने (27 अगस्त, 1968) उसे पकड लिया।

रामन राघवन और उसका हथियार…

वह गणेश चतुर्थी का दिन था, बंबईवासीयोंका सबसे बडा त्योहार! खबर जंगल की आग की तरह फैल गई। सभी ने सोचा कि यह गणपति बाप्पा ही थे जिन्होंने मुंबई पर आये इस भयानक संकट का मोचन किया। उसे जीवन भर येरवदा जेल में कैद रखा गया। ठीक 25 साल पहले, 7 अप्रैल, 1995 को किडनी फेल होने से जेल में उनकी मृत्यु हो गई थी।

शुरूवाती दिनोने में एक चोर, रामन राघवन धीरे-धीरे क्रूर और विकृत हत्यारा बन गया। वह पैसे के लिए हत्या नही करता था। वह तो बहुतही गरीब, फुटपाथ पर सोनेवाले लोगों को मार रहा था। 14 दिनोंके बालक से लेकर बुजुर्गों तक, ऊसने कोई कसर नहीं छोड़ी। वह बहुत ही योजनाबद्ध और ठंडे दिमाग के साथ हत्या करता था। इसके लिए उसने प्रश्न चिह्न के आकार (?) के लोहे के उपकरण बनाए थे।

उसने यह हत्या दो सत्रों में की थी। घाटकोपर क्षेत्र (जहाँ हम उस समय में रहा करते थे) और फिर जोगेश्वरी, शांताराम झील, पठानवाड़ी, कांदिवली, दहिसर क्षेत्रों में सबसे पहले हत्याएं कीं। 1965 और 1968 के बीच, उन्होंने लगभग 42 लोगों पर हमला किया। उसने रात में ये सभी हत्याएं कीं। लेकिन किस्मत से, ऊन सभी लोगोंकी मौत नही हुई। बादने उसने एक बयान में ऐसा कहा की मारने के बाद कभी कोई बच निकलेगा, ऐसा कभी सपनेमे भी नही सोचा था। उनमें से लगभग बाईस लोग गंभीर रूप से घायल हो गए लेकिन बच गए, जबकि बीस की मौत हो गई।

अपनी गिरफ्तारी के जवाब में, उन्होंने कहा कि उन्होंने हत्या "उपर के कानून" और "उपर के आदेश" के कारण की थी। वह देवी सिद्धि का भक्त था और वह उसके आदेश पर हत्या करता था। उन्हें सिद्धि दलवाई, अन्ना, तंबी, वेलुस्वामी के नाम से भी जाना जाता था। मुंबई में इस तरह की नृशंस हत्याओं से पुलिस विभाग की निंद उड गई थी। आम आदमी कुछ सोचनेके काबिल भी नही था।

उसे हिरासत मे लेने के पहले अफवाहों ने शहर मे जोर पकड लिया था कि हत्यारा एक आदमी नहीं बल्कि एक आत्मा या भूत था, जो अचानक बिल्ली या कुत्ते के रूप में हमला कर रहा था। अंधेरा होने पर सड़कें, बगीचे, दुकानें बंद होने लगीं थी। नाइट मूवी शो, होटल खाली होने लगे। लोग दफ्तरों से जल्द घर लौट आया करते थे। उस समय टेलीफोन बहुत कम थे। टीवी भी मौजूद नहीं था। मोबाइल नहीं था। इसलिए झूठी ब्रेकिंग न्यूज़ जैसी कोई बात नहीं थी, कोई टकराव करने वाले टिप्पणीकार नहीं थे, चॅनेल्स के झगड़े, "विद्वानों" की बहस नहीं थी।

रामन के डरसे पश्चिमी उपनगरों में रात्रि की गश्त शुरू हुई। जगह-जगह, बस्तियों, चौराहो में हाथों में लाठी और हॉकी के डंडे लेकर लोग सामूहिक गश्त करने लगे।

भारतीय सिनेमा ने ऐसी मसालेदार कहानी का फायदा नहीं उठाया तो हैरानी की बात होगी! इस पर हिंदी, तमिल, तेलुगु जैसे कई भाषाओ मे फिल्म्स आई। जापानी और रूसी भाषामें भी फिल्में बनाई गई हैं।

आज लोग बाते कर रहे हैं, भले ही सरकार ने कर्फ्यू लगा दिया हो, जो लोगों के जीवन के लिए कानूनी और फायदेमंद है। लेकिन ऊन दिनो शाम को, चरम भय के कारण कर्फ्यू स्वचालित रूप से लगाया गया था। सिर्फ नाम लेनेसे पुरा बदन कंपित हो उठता था।

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