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धर्म राहु-केतु का राशि परिवर्तन 18 मई को:राहु कुंभ राशि में और केतु सिंह राशि में करेगा प्रवेश, हमेशा वक्री रहते हैं ये दोनों ग्रह

धर्म राहु-केतु का राशि परिवर्तन 18 मई को:राहु कुंभ राशि में और केतु सिंह राशि में करेगा प्रवेश, हमेशा वक्री रहते हैं ये दोनों ग्रह

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धर्म राहु-केतु का राशि परिवर्तन 18 मई को:राहु कुंभ राशि में और केतु सिंह राशि में करेगा प्रवेश, हमेशा वक्री रहते हैं ये दोनों ग्रह

धर्म राहु-केतु का राशि परिवर्तन 18 मई को:राहु कुंभ राशि में और केतु सिंह राशि में करेगा प्रवेश, हमेशा वक्री रहते हैं ये दोनों ग्रह news image

धर्म राहु-केतु का राशि परिवर्तन 18 मई को:राहु कुंभ राशि में और केतु सिंह राशि में करेगा प्रवेश, हमेशा वक्री रहते हैं ये दोनों ग्रह

मुख्य विवरण

राहु और केतु, जिन्हें छाया ग्रह भी कहा जाता है, राशि परिवर्तन करने जा रहे हैं।

राहु कुंभ राशि में प्रवेश करेगा जबकि केतु सिंह राशि में आएगा।

रविवार, 18 मई 2025 को एक महत्वपूर्ण ज्योतिषीय घटना घटित होने जा रही है।

ये दोनों ग्रह हमेशा वक्री रहते हैं यानी पीछे की चलते हैं।

राहु जब कुंभ राशि में प्रवेश करेगा तो वह अपने मित्र ग्रह शनि की राशि में होगा।

केतु जब सिंह राशि में प्रवेश करेगा, ये सूर्य की राशि है।

सूर्य आत्मा और नेतृत्व का प्रतीक है।

राहु और केतु प्रत्येक 18 महीने में राशि परिवर्तन करते हैं और वे सदैव वक्री गति से चलते हैं अर्थात् वे पीछे की ओर यात्रा करते हैं।

2025 में यह दोनों ग्रह क्रमश: कुंभ और सिंह राशि में प्रवेश कर रहे हैं, जबकि 2025 से पूर्व 2007-2008 में भी यही स्थिति बनी थी।

इसका अर्थ यह है कि लगभग 18 वर्षों बाद ये ग्रह पुनः इन राशियों में प्रवेश कर रहे हैं।

राहु-केतु के लिए कर सकते हैं ये शुभ काम राहु-केतु के दोषों का असर कम करने के लिए गणेश जी, हनुमान जी और शनिदेव की पूजा करनी चाहिए।

राहु-केतु के मंत्रों का जप करना चाहिए।

विशेष जानकारी

राहु मंत्र - ऊँ रां राहवे नमः और केतु मंत्र - ऊँ कें केतवे नम: का जप कर सकते हैं।

जरूरतमंद लोगों को काले कंबल का दान करें।

ध्यान रखें राहु-केतु की कृपा चाहते हैं तो किसी भी गरीब व्यक्ति का अनादर न करें।

राहु-केतु से जुड़ी खास बातें समुद्र मंथन की पौराणिक कथा के मुताबिक, जब समुद्र से अमृत निकला और देवताओं को दिया जा रहा था, तब एक असुर ने छल से अमृत पी लिया था।

सूर्य और चंद्रमा ने उसकी पहचान कर ली और भगवान विष्णु को बता दिया।

इसके बाद ब्रह्मा जी ने उस असुर का सिर धड़ से अलग कर दिया।

चूंकि उसने अमृत पी लिया था, इसलिए उसके सिर-धड़ की मृत्यु नहीं हुई।

उस असुर का सिर राहु बन गया और धड़ केतु बन गया।

ज्योतिष में इन दोनों ग्रहों को छाया ग्रह माना जाता है, इस कारण ये ग्रह अदृश्य प्रभाव डालते हैं।

इन्हें मायावी ग्रह कहा जाता है।

राहु भ्रम, महत्वाकांक्षा, छल-कपट, तकनीक, राजनीति और विदेश यात्रा का प्रतीक है।

केतु मोक्ष, त्याग, अध्यात्म, आत्मज्ञान, और रहस्य का प्रतीक है।

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Posted on 16 May 2025 | Source: Dainik Bhaskar | Visit HeadlinesNow.com for more stories.

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