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मंदिर Goddess Shashthi Devi: षष्ठी देवी के व्रत से होती है संतान की रक्षा

मंदिर Goddess Shashthi Devi: षष्ठी देवी के व्रत से होती है संतान की रक्षा

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मंदिर Goddess Shashthi Devi: षष्ठी देवी के व्रत से होती है संतान की रक्षा

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मंदिर Goddess Shashthi Devi: षष्ठी देवी के व्रत से होती है संतान की रक्षा

मुख्य विवरण

नवजात शिशु के जन्म के छठे दिन जिन देवी के पूजन की परम्परा है, वे षष्ठीदेवी हैं।

लोक भाषा में इसे नवजात शिशु का छठी महोत्सव भी कहते हैं।

पुराणों में षष्ठी देवी बालकों की अधिष्ठात्री देवी मानी गयी हैं।

मूल प्रकृति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण ये षष्ठी देवी कहलाती हैं।

इन्हें विष्णुमाया और बालदा भी कहा जाता है।

मातृकाओं में ये देवसेना नाम से प्रसिद्ध हैं।

स्वामी कार्तिकेय की पत्नी होने का सौभाग्य इन्हें प्राप्त है।

बालकों को दीर्घायु बनाना तथा उनका भरण पोषण एवं रक्षण करना इनका स्वाभाविक गुण है।

अपने आराधकों की सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली ये सिद्धयोगिनी देवी अपने योग एवं प्रभाव से बच्चों के पास सदा विराजमान रहती हैं।

एक पौराणिक कथा है− प्रियव्रत नाम से प्रसिद्ध एक राजा थे।

उनके पिता का नाम था− स्वायम्भुव मनु।

प्रियव्रत योगिराज होने के कारण विवाह नहीं करना चाहते थे।

तपस्या में उनकी विशेष रुचि थी।

परंतु ब्रम्हाजी की आज्ञा तथा सत्प्रयत्न के प्रभाव से उन्होंने विवाह कर लिया।

विवाह के प्रश्चात सुदीर्घ काल तक उन्हें कोई भी संतान नहीं हो सकी।

तब कश्यप जी ने उनसे पुत्रेष्टि यज्ञ कराया और उनकी प्रेयसी भार्या मालिनी को चरु प्रदान किया।

चरु भक्षण करने के पश्चात रानी मालिनी गर्भवती हो गयीं।

तत्पश्चात सुवर्ण के समान प्रतिभा वाले एक कुमार की उत्पत्ति हुई, परंतु वह कुमार मरा हुआ था।

उसे देखकर समस्त रानियां तथा बान्धवों की स्त्रियां रो पड़ीं।

पुत्र के असह्य शोक के कारण माता को मूर्च्छा आ गयी।

विशेष जानकारी

  इसे भी पढ़ें: Surya Ka Gochar 2025: 30 दिनों तक वृषभ राशि में रहेंगे ग्रहों के राजा सूर्य, जानिए किन राशियों पर होगा इसका असर? राजा प्रियव्रत उस मृत बालक को लेकर शमशान में गये और पुत्र को छाती से चिपकाकर दीर्घ स्वर से रोने लगे।

इतने में उन्हें वहां एक दिव्य विमान दिखायी पड़ा।

शुद्ध स्फटिक मणि के समान जगमगाते हुए उस विमान की रेशमी वस्त्रों से अनुपम शोभा हो रही थी।

वह अनेक प्रकार के अद्भुत चित्रों से विभूषित तथा पुष्पों की माला से सुसज्जित था।

उसी पर बैठी हुई एक देवी को राजा प्रियव्रत ने देखा।

श्वेत चम्पा के फूल के समान उनका उज्ज्वल वर्ण था।

सदा सुस्थिर तारुण्य से शोभा पाने वाली उन देवी के मुख पर प्रसन्नता छाई हुई थी।

रत्नमय भूषण उनकी छवि बढ़ाये हुए थे।

योगशास्त्र में पारंगत वे देवी भक्तों पर अनुग्रह करने के लिए आतुर थीं।

ऐसा जान पड़ता था मानो वे मूर्तिमती कृपा ही हों।

उन्हें सामने विराजमान देखकर राजा ने बालक को भूमि पर रख दिया और बड़े आदर के साथ उनकी पूजा स्तुति की।

उन्हें प्रसन्न देखकर राजा ने उनसे परिचय पूछा।

भगवती देवसेना ने कहा− राजन! मैं ब्रम्हा की मानसी कन्या हूं।

जगत पर शासन करने वाली मुझ देवी का नाम देवसेना है।

विधाता ने मुझे उत्पन्न करके स्वामि कार्तिकेय को सौंप दिया है।

मैं सम्पूर्ण मातृकाओं में प्रसिद्ध हूं।

भगवती मूल प्रकृति के छठे अंश से प्रकट होने के कारण विश्व में देवी षष्ठी नाम से मेरी प्रसिद्धि है।

मेरे प्रसाद से पुत्रहीन व्यक्ति सुयोग्य पुत्र, प्रियाहीन जन प्रिया, दरिद्र धन तथा कर्मशील पुरुष कर्मों के उत्तम फल प्राप्त कर लेते हैं।

राजन्! सुख, दुरूख, भय, शोक, हर्ष, मंगल, संपत्ति और विपत्ति ये सब कर्म के अनु।

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Posted on 15 May 2025 | Source: Prabhasakshi | Visit HeadlinesNow.com for more stories.

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