News Breaking
Live
wb_sunny

एन. रघुरामन का कॉलम:जीवन में कभी-कभी परिपूर्णता से भी पीड़ा क्यों होती है? - Politics

एन. रघुरामन का कॉलम:जीवन में कभी-कभी परिपूर्णता से भी पीड़ा क्यों होती है? - Politics

Policy buzz:

एन. रघुरामन का कॉलम:जीवन में कभी-कभी परिपूर्णता से भी पीड़ा क्यों होती है? - Politics

एन. रघुरामन का कॉलम:जीवन में कभी-कभी परिपूर्णता से भी पीड़ा क्यों होती है? - Politics news image

एन. रघुरामन का कॉलम:जीवन में कभी-कभी परिपूर्णता से भी पीड़ा क्यों होती है? - Politics

मुख्य विवरण

मेरा इंतजार मत करना, डिनर भी बाहर करूंगी।

इस सप्ताह मैं अपने एक मित्र के घर गया, जिनकी बच्ची ने परीक्षा में 95% अंक हासिल किए थे।

जब हम बातचीत कर रहे थे, तब उनकी सबसे बड़ी बेटी उनके दोमंजिला मकान की पहली मंजिल से उतरकर आई, मेरा अभिवादन किया और यह कहते हुए बाहर चली गई कि ‘मैं आज रात को देर से घर आऊंगी।

’ जब तक उसकी मां पूछ पाती कि कितनी देर, वह बाहर निकल चुकी थी।

बंद दरवाजे के पीछे से उसका अस्पष्ट जवाब सुनाई दिया कि ‘खुद मुझे नहीं पता, लेकिन रेस्तरां के डिनर पर पहुंचते ही आपको बता दूंगी।

’ मैंने देखा कि जिन माता-पिता का चेहरा कुछ क्षण पहले तक चमक रहा था, वह अचानक फीका पड़ गया।

मुझे याद आया कि छह वर्ष पहले जब उनकी यही बेटी स्कूल में बहुत अच्छे अंक लेकर आई थी और तमाम अखबारों में उसका नाम आया था, तब भी मैं उनके घर गया था।

उस वक्त वह माता-पिता से गुहार लगा रही थी कि ‘प्लीज क्या मैं जा सकती हूं?’ उसकी छोटी बहन भी मां-पिता से उसकी सिफारिश कर रही थी कि ‘उसे जाने दीजिए, मम्मा।

’ आज वही बच्ची घर में घोषणा कर रही है कि मैं देर से आऊंगी और यह भी नहीं बता रही है कि वह कहां जा रही है।

आपमें से बहुत-से माता-पिता बढ़ते बच्चों के बोलने के लहजे में धीरे-धीरे आ रहे इस बदलाव पर सहमत होंगे।

ऐसा नहीं कि बच्ची बिगड़ गई है।

वह अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी कर एक प्रतिष्ठित अस्पताल में इंटर्न के तौर पर काम कर रही है।

विशेष जानकारी

हम बात कर ही रहे थे कि अचानक डोरबेल बजी।

मां ने दरवाजा खोला।

सामने रहने वाले एक पड़ोसी ने पूछा कि क्या डॉक्टर घर पर है? मां ने गर्व से कहा कि ‘नहीं, शिवानी (परिवर्तित नाम) अभी-अभी बाहर गई है।

वह रात को भी देर से आएगी।

’ मैं साफ देख पा रहा था कि मां भीतर से इस बात को नकार रही हैं ​कि जो बच्ची कल तक खांसी में भी आइसक्रीम खाने की जिद करती थी, वह आज माता-पिता को आइसक्रीम नहीं खाने की हिदायत देने लगी है।

डिजाइनर हेयर क्लिप लगाने से पहले अनुमति मांगने वाली वही बच्ची आज अपनी मां से यह तक नहीं पूछती कि मैं कैसी लग रही हूं? माता-पिता उसे आज भी उसी बच्ची की तरह देखते हैं, जो कभी उनसे सुरक्षा और अनुमति की तलाश करती थी।

यही कशमकश उनके दु:ख का कारण बन रही थी।

बच्ची का लहजा नहीं बदल गया था, वह एक दूसरे मुकाम पर चला गया था।

लेकिन माता-पिता के रूप में हम दूसरे मुकाम पर नहीं जा पाते और अपने जीवन में ‘लेटिंग गो’ वाला सबक नहीं सीख पाते।

जब मेरे माता-पिता मेरी और बहन की परवरिश कर रहे थे तो मैंने अपने हाथों से बहन की चोटी करना सीखा।

यह मैंने अपनी बेटी के लिए भी जारी रखा।

आज उसने जब अपनी अमेरिकी जीवन-शैली के अनु।

Related: Top Cricket Updates


Posted on 18 May 2025 | Source: Dainik Bhaskar | Stay updated with HeadlinesNow.com for more news.

Tags

Newsletter Signup

Sed ut perspiciatis unde omnis iste natus error sit voluptatem accusantium doloremque.