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Gyan Ganga: पर्वतराज हिमाचल ने पार्वती का हाथ पकड़कर शिवजी को समर्पित कर दिया Breaking News Update

Gyan Ganga: पर्वतराज हिमाचल ने पार्वती का हाथ पकड़कर शिवजी को समर्पित कर दिया Breaking News Update

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Gyan Ganga: पर्वतराज हिमाचल ने पार्वती का हाथ पकड़कर शिवजी को समर्पित कर दिया Breaking News Update

देवी पार्वती को अपनी गोद में लेकर मैना हृदय को चीर देने वाला विलाप किए जा रही थी।

केवल मैना ही नहीं हिमाचल की लगभग सब स्त्रियां ऐसा ही क्रंदन कर रही थीं।

मानो देवी पार्वती जी का विवाह न होकर इनका अंतिम संस्कार होना हो।

सबको ऐसे विलाप करते देख देवाी पार्वती माता मैना को समझाते हुए बोली- जननिहि बिकल बिलोक भवानी।

बोली जुत बिबेक मृदु बानी।

अस बिचारि सोचहि मति माता।

सो न टरइ जो रचइ बिधाता।

देवी पार्वती बड़ी कोमल वाणी में माता मैना को कर्मों की गति का उपदेश देती हैं।

हे माता! कर्मों से भला आज तक कौन जीत पाया है।

विधाता ने जो रच दिया, वह कभी टलता नहीं।

ऐसा विचार करके हे माता ! आप व्यर्थ की चिंता मत करें।

चिंता से शरीर का नाश निश्चित है।

अच्छा हो कि आप चिंता की बजाये चिंतन में मन को लगाएं।

  इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: शिव-पार्वती विवाह में डाली माता मैना ने अड़चन करम लिखा जौं बउर नाहू।

तौं कत दोसू लगाइअ काहू।

तुम्ह सन मिटहिं कि बिधि के अंका।

मातु ब्यर्थ जनि लेहू कलंका।

हे माता! अगर मेरे भाग्य में बावला पति ही लिखा है, तो अन्य और को इसका दोष क्यों लगाया जाए।

किसी को दोष देकर आप मेरे भाग्य को तो बदल नहीं पाएंगी? उल्टे स्वयं ही विचलित व परेशान रहेंगी।

फिर जिसके सिर पर तुम दोष मढ़ोगी वह भी तो आपसे बैर भाव से व्यवहार करेगा।

ऐसे में समस्या का कोई समाधान नहीं होगा अपितु समस्या और बढ़ जाएगी।

या फिर यह कह लो, कि माता आप विधाता के लिखे अंकों को मिटाने का सामर्थ्य तो रखती नहीं हो? ऐसा तो तुम कर नहीं पाओगी और व्यर्थ में ही विधाता को कोसते रहने से संसार में अपयश फैलेगा।

आप नाहक ही कलंक का टीका अपने मस्तक पर क्यों लगाने पर तुली हैं? मैं फिर से समझा रही हूं, कि हमारे जीवन में जो भी दुख-सुख के प्रसंग घटित हो रहे हैं इन सबके पीछे विशुद्ध रूप से हमारे कर्मों की ही कहानी है।

अगर हमारे भाग्य में कुछ नहीं लिखा तो वह स्वपन में भी हमारे साथ घटित नहीं होगा।

और जो हमारे भाग्य में विधाता ने एक बार लिख दिया उसे भला कौन मिटा सकता है? आप रोने की बजाय विधाता द्वारा लिखे विधान को अटल मान कर शोकरहित हो जाएं।

क्योंकि यही नीति की रीति व प्रीति है।

  इस प्रकार पार्वती अपनी माता मैना को धर्म व कर्म का सारगर्भित उपदेश दे रही है।

उधर जब हिमवान के कानों तक यह समाचार पहुंचा, तो यह सुनते ही उन्हें चिंता सताने लगी कि रानी मैना कहीं देवी पार्वती को कोई अनादर भाव से कुछ बोल न दे।

कारण कि मैना देवी मैना पार्वती को मात्र अपनी पुत्री ही मान कर बैठी हैं।

उसका संतान प्रति मोह कहीं मैना को अधोगति की तरफ न धकेल दे।

किंतु ऐसी अवस्था में आखिर क्या किया जाए? क्योंकि मैना तो विधाता के साथ-साथ देवर्षि नारद को भी मलिन भाव से देख रही है।

अब कुछ ऐसा करना चाहिए, कि मैना को बोध हो जाए हालांकि देवी पार्वती माता मैना को समझा ही रही थीं।

किंतु मैना पूर्णतः जड़ ही बनी बैठी हैं।

जो आदि शक्ति के समझाने पर भी न समझे,उसे विधाता भला क्या समझा लेंगे? किंतु तभ भी एक आशा है, वेद-शास्त्र ऐसा समर्थन करते हैं, कि जहां ईश्वर भी किसी कार्य को करने में असमर्थ प्रतीत हो, तो उसे संतो की शरण में गिर जाना चाहिए।

और इस समय मुनि नारद जी से बढ़कर भला कौन संत होगा? राजा हिमवान मुनि नारद एवं सप्तर्षियों को साथ लेकर उसी समय वहां पहुंचे, जहां मैना विलाप किए जा रही थी।

मैना पहले तो मुनि नारद को देखकर और दुखी हो गई कि यही वह मुनि हैं, जिनके बहकावे में आकर मेरी फूल जैसी सुकोमल पुत्री कांटों से भी कंटीली जिंदगी जीने को विवश हो रही है।

  मुनि नारद जी ने मैना को ऐसे असंतोष व क्रोध भरे भावों से पीड़ित देखा तो वे बड़े प्रेम से देवी पार्वती के पूर्व जन्म की कथा सुनाने लगते हैं।

कि कैसे देवी पार्वती पिछले जन्म में सती थीं और भगवान् शंकर जी से अज्ञानता वश एक पाप कर बैठी।

यह वही प्रसंग था जिसमें वे श्रीराम जी को पत्नी वियोग में रोते देखकर श्री सीता जी का रूप धारण कर बैठी।

जिस कारण भगवान् शंकर उन पर कुपित हुए और सती को अपने पिता दक्ष के यज्ञ कुण्ड में भस्म होना पड़ा।

आज वही सती हिमवान के घर में देवी पार्वती के रूप में प्रकट हुईं हैं।

मेरा सच मानो देवी पार्वती केवल आपकी पुत्री नहीं अपितु साक्षात जग जननी है- अजा अनादि सक्ति अबिनासिनि।

सदा संभु अरधंग निवासिनि॥ जग संभव पालन लय कारिनि।

निज इच्छा लीला बपु धारिनि॥ अर्थात देवी पार्वती अजन्मा, अनादि व अविनाशिनी शक्ति है।

वे सदा शिव जी के अद्धांग में रहती है।

ये जगत की उत्पति,पालक और संहार करने वाली है।

और अपनी इच्छा से ही लीला शरीर धारण करती हैं।

    देवर्षि नारद जी के ऐसे वचन सुनकर सबका विषाद मिट गया।

और क्षण भर में यह समाचार हिमाचल के घर-घर में फैल गया तब हिमवान व मैना आनंद में मग्न होते हैं एवं बार-बार देवी पार्वती के चरणों की वंदना करते हैं।

बड़े आदर सम्मान के साथ सारी बरात का सम्मान किया जाने लगा।

हिमवान व सभी सयाने भगवान् शंकर को लिवा लाए।

उन्हें सुंदर सिंघासन पर बिठाया गया।

देवी पार्वती को भी सुंदर आसन पर बिठाया गया।

सप्तर्षियों ने लग्न पत्रिका तैयार की।

सभी देवी-देवता एकत्र है एवं विवाह की रीति संस्कार घटित होने वाले हैं।

भगवान् शंकर और देवी पार्वती द्वारा मुनियों ने गणेश जी का पूजन करवाया।

वेदों में जैसी रीति विवाह कही गई है महामुनियों ने वह सभी रीति करवाई।

पर्वतराज हिमाचल ने हाथ में कुश लेकर एवं कन्या का हाथ पकड़कर उन्हें भवानी जानकर शिवजी को समर्पित कर दिया।

(---क्रमशः) - सुखी भारती।

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Posted on 24 June 2025 | Keep reading HeadlinesNow.com for news updates.

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