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Gyan Ganga: राजा हिमवान ने अपनी पुत्री को भगवान शंकर के साथ किया विदा Breaking News Update

Gyan Ganga: राजा हिमवान ने अपनी पुत्री को भगवान शंकर के साथ किया विदा Breaking News Update

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Gyan Ganga: राजा हिमवान ने अपनी पुत्री को भगवान शंकर के साथ किया विदा Breaking News Update

भगवान शंकर-पार्वती का पावन विवाह संपन्न हुआ।

राजा हिमवान ने भरपूर दहेज देकर, व सबका यथोचित सम्मान करके, अपनी पुत्री को भगवान शंकर के साथ विदा कर दिया।

मुनि भरद्वाजजी ने, मुनि याज्ञवल्क्य जी से, भगवान शंकर के विवाह की गाथा को सुन महान सुख माना।

उनकी रोमावली खड़ी हो गई।

उनके नेत्रें में जल भरा हुआ है।

उनकी ऐसी दशा देख कर मुनि याज्ञवल्क्य जी को अत्यंत प्रसन्नता हुई।

क्योंकि मुनि भरद्वाजजी ने श्रीराम कथा को श्रवण करने की प्रथम शर्त को पार कर लिया था।

वह शर्त थी, कि अगर श्रीनघुनाथ जी के पावन चरित्र को श्रवण करना है, तो सर्वप्रथम यह सिद्ध होना आवश्यक है, कि आप भोलेनाथ के परम भक्त हों या नहीं- ‘सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं।

रामहि ते सपनेहुँ न सोहाहीं।

बिनु छल बिस्वनाथ पद नेहू।

राम भगत कर लच्छन एहू।

’ अर्थात शिवजी के चरण कमलों में जिनकी प्रीति नहीं है, वे श्रीरामचन्द्रजी को स्वपन में भी अच्छे नहीं लगते।

विश्वनाथ श्री शिवजी के चरणों में निष्कपट प्रेम होना, यही रामभक्त के लक्षण है।

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: भगवान भोलेनाथ और देवी पार्वती का पाणिग्रहण यहाँ निश्चित ही मन में प्रश्न उठता होगा, कि आखिर ऐसा क्यों अनिवार्य है, कि प्रभु श्रीराम जी के प्रति, उनकी ही प्रीति होगी, जिनकी प्रीति भगवान शंकर जी के चरणों में होगी।

सज्जनों! वास्तव में हम गोस्वामी तुलसीदास जी के मनोभावों को समझ नहीं पा रहे हैं।

आप देखिए, कि वे लिखने तो बैठे हैं, श्रीराम जी की पावन कथा।

किंतु इससे पूर्व, कि वे श्रीरामजी की कथा कहें, वे भगवान भोलेनाथ जी की पवित्र गाथा को आरम्भ करके बैठ गए।

क्यों? तो इसके पीछे एक महान मनोविज्ञान वे सिद्धांत है।

उदाहरणतः जब कोई कैमरामैन किसी की तसवीर खींचता है, तो कैमरा बिल्कुल भी नहीं हिलाता।

वह कभी भी हिलते कैमरे से तसवीर नहीं खींचता।

कैमरा न हिले, इसके लिए वह अपने श्वांस तक भी रोक लेता है।

कारण कि हिलते हुए कैमरे से, सामने बैठे सुंदर से सुंदर व्यक्ति की तसवीर भी बिगड़ी व भद्दी ही प्रतीत होती।

ठीक इसी प्रकार से जब हम श्रीराम जी की कथा श्रवण करने बैठते हैं, तो यह निश्चित करना आवश्यक है, कि हमारा मन चंचल अवस्था में तो नहीं है।

क्योंकि चंचल मन मानों हिलता हुआ कैमरा है।

जिसमें परम सुंदर भगवान श्रीराम जी की तसवीर हमें, सुंदर होकर भी, सुंदर प्रतीत नहीं होगी।

ठीक उसी प्रकार, जैसे सती जी को श्रीराम जी में, भगवान का रुप न दिख कर, एक पत्नि वियोगी राज कुमार का ही दर्शन हुआ।

वे श्रीरामजी में भगवान रुप को थोड़ी न देख पाई।

उनके मन में तो संशय ने ही डेरा जमाये रखा।

वैसे देखा जाये, तो सती जी को श्रीराम जी में तो बाद में संशय हुआ, इससे पहले तो सती जी को भगवान शंकर के क्रिया कलापों पर ही संशय हो गया था।

इसे संशय ही कहा जायेगा, कि जब श्रीराम जी को दूर से ही ‘जय सच्चिदानंद’ कहकर प्रणाम किया, तो सती को भी उनका प्रणाम करना उचित ही लगना चाहिए था।

उन्हें यह शत प्रतिशत विश्वास होना चाहिए था, कि शंभू तो स्वपन में भी भ्रमयुक्त क्रिया नहीं कर सकते।

किंतु दुर्भाग्यवश सती भोलेनाथ पर भी विश्वास नहीं जमा पा रही है।

यहाँ सती की भगवान शंकर के श्रीचरणों में कच्ची प्रीति ही उनके चंचल मन की निशानी है।

ऐसी अवस्था में भी सती, श्रीराम जी को समझने व परखने चली गई।

ऐसे में उनके चंचल मन के कैमरे से, भगवान श्रीराम जी की सुंदर तसवीर भला किस प्रकार आ पाती? अब प्रश्न उठता है, कि भगवान शंकर की कथा सुनने से, भला हमारे मन की चंचलता आखिर क्यों शांत होती है? तो इसका उत्तर यह है, कि भगवान शंकर तो ठहरे बैरागी व योगी।

उनके परम वैराग्य की तीनों लोकों में कोई काट नहीं।

मनोविज्ञान कहता है, कि आप जिस पात्र, स्थान अथवा लोक की गाथा सुनोगे, आपके मन पर उसका प्रभाव पडे़गा ही पड़ेगा।

इस आधार पर हम समझ सकते हैं, कि जो भी जिज्ञासु परम बैरागी भगवान शंकर की गाथा सुनेगा, उसके मन में भी बैराग उत्पन्न होगा।

मन में उत्पन्न हुआ बैराग ही मन के शांत होने का सूचक है।

और ऐसे शांत मन से ही श्रीरामजी की कथा, हमारे हृदय में बैठ पाती है।

मुनि भरद्वाजजी के श्रद्धा से भरे मुख मंडल को देख, मुनि याज्ञवल्क्य जी समझ गए, कि जो जिज्ञासु भगवान शंकर की गाथा को सुन कर नेत्रें से अश्रुपात करने लगे, वास्तव में वही श्रीराम जी की कथा को श्रवण करने का सही अधिकारी है।

तब मुनि याज्ञवल्क्य जी कहते हैं, कि हे मुनि भरद्वाज जी- ‘प्रथमहिं मैं कहि सिव चरित बूझा मरमु तुम्हार।

सुचि सेवक तुम्ह राम के रहित समस्त बिकार।

’ अर्थात हे भरद्वाज मुनि! मैंने पहले ही शिवजी का चरित्र कहकर तुम्हारा भेद समझ लिया है।

तुम श्रीरामचन्द्र जी के पावन सेवक हो और समस्त दोषों से रहित हो।

अब मैं तुम्हें श्रीराम जी की कथा सुनाता हुँ।

क्रमशः - सुखी भारती।

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Posted on 02 July 2025 | Follow HeadlinesNow.com for the latest updates.

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